क्या ये प्रलय का समय हैं
क्या ये प्रलय का समय हैं !
क्या ये प्रलय का समय हैं
श्याह पडा आसमान हैं
शहर हुआ वीरान है
उखड़ रही चाहते हैं
धधक रहा शमशान हैं
क्या ये प्रलय का समय हैं !
गिद्धों का लगा बाजार है
सांसों का हो रहा व्यापर है
जलने का हो रहा इंतजार है
इंसानियत आज शर्मसार हैं
क्या ये प्रलय का समय हैं !
चहुऔर घनघोर अंधेरा है
बेबसी ने डाला डेरा हैं
सन्नाटे को तोड़ शिशकीआ हैं
आंसुओं का समन्दर हैं
क्या ये प्रलय का समय हैं !
Sanjeev Singh
Comments
Post a Comment